Surprise Me!

बिन देखे बिन सोचे बिन जाने, सब जानते हो तुम || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2014)

2019-11-27 1 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />१३ मार्च २०१४<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />अष्टावक्र गीता (अध्याय १८ श्लोक २७)<br />नाविचारसुश्रान्तो धीरो विश्रान्तिमागतः।<br />न कल्पते न जाति न शृणोति न पश्यति ॥<br /><br />अर्थ:<br />जो धीर पुरुष अनेक विचारों से थककर अपने स्वरूप में विश्राम पा चुका है,<br />वह न कल्पना करता है, न जानता है, न सुनता है और न देखता ही है॥<br /><br />प्रसंग:<br />क्या सत्य के भी तल होते है?<br />"बिन देखे बिन सोचे बिन जाने, सब जानते हो तुम" ऐसा क्यों कह रहे है? अष्टावक्र<br />सत्य का आभाव कभी नहीं है इसका क्या आशय है?

Buy Now on CodeCanyon